Thursday, February 3, 2011

ग़ज़ल

कैसे समझाऊँ कि क्या होता है
ज़िक्र करते ही वो तो रोता है

उसे चराग़ों का इल्म कैसे हो
हाथ आँखों पे रखके सोता है

ये नज़ारे हसीन हैं लेकिन
जाने क्यूँ मुझको वहम होता है

आँख कुल जाएगी जब ये टूटेगा
तेरे सपने में क्या-क्या होता है

लौट आयेगी हवाओं में नमी
आँसुओं को चमन में बोता है

जो भी इस दौर की दुनिया से
बात करता है, बात खोता है

चैन कभी ठिकाने नहीं मिलता
कहाँ जाने फिरता रोता है

4 comments:

Rangnath Singh said...

"जो बात करता है बात खोता है"
गजल का यह मिसरा सबसे अधिक पसंद आया।

Arun sathi said...

bahut khub

स्वप्निल said...

जो बात करता है बात खोता है
yani sabko bata deta hai ... jo khata ha vo sahsi bhe hota hai janab

स्वप्निल said...

जो बात करता है बात खोता है
yani sabko bata deta hai ... jo khata ha vo sahsi bhe hota hai janab