Thursday, February 11, 2010

नज़्म

नज़्म




नज़र से मिली नहीं नज़र कि दिल बेताब हो उठे


मुहब्बत कब हुई मोहताज़ किसी पुख्ता तआरुफ की



वो मिलना नज़र का, ठिठकना एक पल का

वो भी क़यामत था झुकाना पलक का

कुछ हल्की सी लहरें उठीं मेरे दिल में

सम्हाले ने सम्हला तूफ़ां जिगर का



इक पल को तो यूँ रह गये हम ठगे से

जो उनकी भी आँखों में मौसम को देखा

वो जो हवायें वहाँ चल रही थीं

उनको पलटते उधर से जो देखा



कैसे बताऊँ कहाँ खो गया था

जीवन में पहला वो ऐसा समां था

रूह भी पराई होने लगी थी

दिल बेवफ़ाई करने लगा था



दीग़र नज़ारे सभी खो गये थे

ख़्वाबों, ख़यालों का मौसम बना वो

उनका भी आँचल उड़ने लगा

आँखों ही आँखों में तूफाँ उठा वो



वो तूफ़ाँ अभीतक थमा ही नहीं है

होशो-हवास उड़े जा रहे हैं

फिर उनकी आँखों में देखूँगा कैसे

मुझको सितारे नज़र आ रहे हैं



है कोई जो मुश्किल आसान करदे

मुहब्बत के दरिया का साहिल नहीं हैं

मुझको किनारे की ख़्वाहिश नहीं पर

डूबी है कश्ती, नाखुदा भी नहीं है


उन्हीं से कहे यह बात बने तो


यारब वे ही अब यह किश्ती संभाले

मैं तो नज़र अब चुराने लगा हूँ

कब ये हो कि वे पास बुलालें

4 comments:

अनिल कान्त said...

bahut khoobsurat nazm padhne ko mili

निर्मला कपिला said...

खूबसूरत प्रेमाभिव्यक्ति है । शुभकामनायें

रानीविशाल said...

Behtareen Abhivyakti........Badhai!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

रंजीत/ Ranjit said...

manbhavan...