Wednesday, March 31, 2010

मगरमच्छ

मगरमच्छ एक बडे-से गड्डे में, गंदे-से पानी में पड़ा रहता था। कुछ नहीं मिलता था उसे खाने को। जंगल में छाड.-छंखाडों और कंकरीले मैदानों के बीच गड्डे के बदबूदार पानी पर जमी थी काई। काई – मिट्टी, मेंडक और छोटे-मोटे कीडों से नहीं बुझती थी मगर की भूख। पक्षी उसके हाथ न आते थे। मगर का सपना था मनुष्य-भक्षण। पर क्या करे! समृद्धि के शहर को जाने वाला रास्ता मगर के तथाकथित तालाब से परे-परे लांगकट में चला जाता था। मनुष्य भूले से भी न फटकता था तालाब के आसपास । वह न तालाब में गिरता न मगर के पेट में समाता। सपने और भूख से तपड़ता मगर कृशकाय हुआ जाता था और शक्ति क्षीण होती जा रही थी। एक दिन मगर निकला और शहर के रास्ते पर पहुँचा। खुले मैदान में मनुष्य को गटकना उसके लिये संभव तो नहीं हुआ लेकिन उसने मनुष्य की दो मज़बूरियों का पता कर लिया। एक तो समृद्धि के शहर का रास्ता अनावश्यक घुमावदार था जिसमें मनुष्यों को ज्यादा चलना पड़ता था, उन्हें थकान होती थी। यदि यही रास्ता ऐन तलाब के उपर से सीधे निकाल दिया जाता तो मुनुष्यों के लिये शहर का रास्ता छोटा हो सकता था। मनुष्य जरूर इस कदम का स्वागत करते। दूसरे, शहर का रास्ता बहुत ऊबड़-खाबड़ और कठिन था उस पर चलना मनुष्यों के लिये बहुत कष्टमय था। यदि रास्ता तालाब के उपर से निकाल कर उस पर सुंदर सड़क बनवा दी जाती, रास्ते के दोनों ओर अच्छे छायादार पेड़ –पौधे लगा दिये जाते, जगह- जगह जलपान की व्यवस्था करदी जाती तो मनुष्य खिंचे चले आते तालाब की ओर। बस फिर क्या था। मगर पूरे उत्साह से लग गया मिशन में, मनुष्यों के कष्ट देख हमेशा उसकी आँखों से आंसू टपकते रहते। उसने ऐन तालाब के ऊपर से समृद्धि के शहर का रास्ता खींच दिया, यह शहर के लिये शार्टकट रास्ता था। उसने रास्ते पर अच्छी चमचमाती सड़क बनवाई, रास्ते के दोनों और खुशबू दार पौधे, छायादार वृक्ष लगा दिये। जगह-जगह स्वागत संदेश और शुभयात्रा की कामनाओं के साथ-साथ गड्डे के दोनों ओर रास्ते पर दो बड़े-बड़े सूचना पट्ट भी लगा दिये – “सावधान ! आगे एक गहरा गड्डा है कृपया बचकर चलें।“
मनुष्य खुश थे, उनमें मगर की महानता और मनुष्य-प्रियता के चर्चे बडे़ जोर-शोर से फैले। वे दौडे हुए जाते शहर की ओर और गड्डे से सावधानी से बचकर निकलते । क्यूँ कि सड़क बहुत बढ़िया थी वहाँ पहुंचकर मुनुष्य का अपने आप दौड़ने का मन करने लगता और उनमें बहुत से अपनी गति में सावधानी के बोर्ड पर नज़र ही नहीं डाल पाते, बहुतों को बोर्ड पर लगी सावधानी का भरोसा नहीं होता वे सोचते आखिर इतनी बढ़िया सड़क पर मगर गड़्डा छोडेगा ही क्यूँ, उन्हें यह बोर्ड किसी शरारती की करतूत लगता। लिहाजा काफी सारे मनुष्य गड्डे में गिरने लगे। भीतर बैठा मगर अब खुश था, मजे से मनुष्य को खाता, फिर चेहरे पर दुःख ओढ़, आँखों से आँसू बहाता गड्‍डे से बाहर निकल मनुष्य के गड्‍डे में गिर जाने पर दुःख प्रगट करता। साथ ही मनुष्य के घरवालों के लिये कुछ सहायता राशि की घोषणा भी करता, जो वह मनुष्यों से ही अच्छे रोड़ की एवज में टैक्स के रूप में वसूलता था। सारे मनुष्य मगर की महानता के गुण गाते और गड़डे में गिरने वाले मनुष्य को लापरवाह ठहराते, कि आखिर उसने मगर महोदय के लगाये हुए बोर्ड की अवहेलना क्यूँ की। जब बहुत ज्यादा मनुष्य गड्डे में गिरने लगे तो बावजूद गड्‍डे के पार उतरे मनुष्यों की दलीलों के मनुष्यों में यह आवाज उठने लगी कि मगर साहब गड्डे को भरवायें। मगर साहब ने इस दलील का पूरा सम्मान किया और इस पर अपनी चिंता से भी लोगों को अवगत कराया कि वे कब से इस गड्‍डे को भरवाने की योजना बना रहे हैं , वे तो अपने निवास की भी परवाह नहीं करते जो इसी गड्डे में है, वे जंगल में प्यास से तड़प-तड़प कर मर जाना स्वीकार करेंगें, यदि ये गड्डा भर सके। लेकिन क्या करें ! गड्डे के नीचे ऐसा दलदल है कि इसे किसी भी तरह भरा जाना संभव नहीं है। उन्होंने विशेषज्ञों की रिपार्ट निकालकर मनुष्यों को दिखाई। उन्होंने बताया कि हमने तो एकबार इस गड्डे को उपर से ढकवा दिया था लेकिन इसके बावजूद मनुष्य इसमें गिरते रहे तो हमने इसे वापस उघाड़ दिया कि आखिर मनुष्य देख कर तो नहीं गिरेंगे। अलबत्ता उन्होंने एक सुझाव मनुष्यों को अपनी ओर से दिया की वे इस राह पर चलने के लिये मनुष्यों के लिये प्रशिक्षण केन्द्र खोलेंगे। जिनमें मनुष्यों को गड्‍डे से बचकर निकलने का सैंद्धातिक और व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जायेगा। मनुष्य इस प्रस्ताव से आह्लादित हो गये और अपने आप पर शर्मिंदा भी कि आखिर उन्होंने इतने अच्छे मगर साहब के निवास की भी परवाह नहीं की। अबकी बार एकाएक गड्डे में गिरने वालों की संख्या में भारी कमी हो गयी। मगर साहब वैसे खुद ही जानते थे कि उनपर क्या बीती! लेकिन उन्होंने फिर भी मनुष्यों को बधाई संदेश भिजवाया। बदले में मनुष्यों ने मगर साहब के लिये धन्यवाद संदेश भिजवाया और साथ में अपनी भूल का माफीनामा भी कि उन खुदगर्जों को धन्यवाद देने की भी याद नहीं रही जबकि मगर साहब उन्हें सही समय पर बधाई देने पहुँच गये। इससे यह भी साबित होता था कि मगर साहब हमेशा मनुष्यों के विषय में ही सोचते रहते हैं, दूसरी तरह से वे सोचते तो थे ही इसलिये उन्हें मनुष्यों का सब हाल मालूम रहता था। इसके तुरंत बाद मगर साहब ने एक और उपकार मनुष्यों पर किया उन्होंने प्रशिक्षण केन्द्रों में भारी तादात में मनुष्यों को ही प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त कर दिया. साथ ही प्रशिक्षण को इस बहाने थोड़ा कड़ा कर दिया कि अभी भी कुछ मनुष्य गड्डे में गिर ही जाते हैं। दूसरा उन्होंने मनुष्यों को राजमार्ग पर उनके मन मुताबिक व्यवसाय करने के लिये दुकाने आवंटित करना भी शुरू कर दिया। चूँकि सुरक्षित राजमार्ग पर आवाजाही बढ़ गई थी और हर समय चहल-पहल रहती थी तो व्यापार के अवसर भी पैदा हो गये थे। फलतः मनुष्य टूट पडे और काफी सारी दुकानें राजमार्ग के दोनों ओर खुल गईं। वहाँ मनुष्य ही विक्रेता और मनुष्य ही खरीददार थे। थोडे ही दिन बाद मगर साहब ने राजमार्ग पर मदिरा की दुकाने खोलने के लिये आवेदन माँगे, जिसकी जरूरत व्यापारी और यात्री दोनों प्रकार के मनुष्य काफी दिनों से महसूस कर रहे थे। मनुष्यों के बाकायदा काफी संख्या में माँगपत्र मगर साहब के पास पहुँचे थे जिनपर मगर साहब ने काफी विलम्ब से और नाखुशी के साथ सिर्फ मनुष्यों की भावना के कारण ही यह निर्णय लिया था।
उधर कडे प्रशिक्षण के कारण मनुष्य प्रशिक्षकों के पास रिश्वत के ऑफर आने लगे और मनुष्य मगर साहब की पीठ पर चोरी-छुपे फर्जी लाईसैंसे बेचने लगे। इसका मिलाजुला प्रभाव यह हुआ कि गड्डे में अब खूब मनुष्य गिरने लगे। हाय-तोबा तो होती थी, प्रशिक्षण पर और शराब की दुकानों पर उंगली भी उठती थी लेकिन मगर साहब से पहले ही काफी संख्या में मनुष्य ही इन बातों के विरोध में आ जाते थे, उनका तर्क था मगर साहब जो कर सकते थे सब कर चुके हैं, मनुष्य स्वयं ही अपनी गलती से गड्डे में गिरते हैं। मगर इस तर्क को सुनकर मन ही मन खुश होता था लेकिन कहता यही था कि इन लोगों की पीड़ा को भी समझा जाना चाहिये। मनुष्यों की रोज़-रोज़ की लडाई से तंग आकर मगर साहब ने दोनों पक्षों के बराबर सदस्य चुनकर एक कमेटी बना दी । कमेटी के निर्णय के अनुसार ही राजधानी समृद्धि नगर को जाने वाले राजमार्ग के गड्डे और उससे जुडी तमाम बातों पर कोई कार्य-योजना बनाई जायेगी। जो भी होगा सर्व-सम्मति से होगा और उसमें मगर साहब का कोई हस्तक्षेप भी नहीं होगा। तब तक राजमार्ग पर आवागमन सुचारु रखने के लिये मगर साहब दृढ़-प्रतिज्ञ हैं। वे अपने तालाब में बैठे सर्वसम्मत निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

1 comment:

विजयप्रकाश said...

प्रशासन की अच्छी पोल खोली है.बहुत बढ़िया व्यंग है