Saturday, October 31, 2009

इतिहास और हम

इतिहास और हम

आज
बहुत वीरता महसूस की
उन्हें लताड़ा इतना

हमने कहा
वे अपराधी थे, अत्याचारी
कुटिल, व्यभिचारी, चोर, लफंगे
डाकू और दरिद्र, लघु और अधम
बर्बर, मूर्ख कहा उन सभी को
जो शासक थे किसी व्यवस्था, किसी समय के

जो जो बड़े थे अपेक्षाकृत तब हमसे
जिनने कुछ बनवाया था/बनाया था
अपने नाम लिखवा गये थे वे अपनी निगरानी में

हमसे कुछ पहले
कोई उनके पक्ष में बोला
बड़ाई की
हमारी घृणा को अन्य चोट देते हुए

उन्हें हमने आज हराया
उनका सृजन अपना ठहराया
उनका ध्वंसकर्म भी निष्फल कर दिया
हमने थूका उनके नामों पर

वे आज भी हैं
हम तब भी थे
हम तब भी घृणा करते थे
वे आज भी शासन करते हैं

इतिहास में वे ही रहेंगे
जिनसे हम घृणा करते हैं?

हम सदियों पुरानी बातों को गलत ठहराते हैं
वर्तमान को भी
लेकिन सुधारते नहीं हैं
हमें आता भी नहीं है इतिहास बनाना
जो बनाते हैं उनसे गलत हो जाता है
हमारे लिये।

Saturday, October 3, 2009

खामोश ! पिता बहुत गुस्से में है

खामोश ! पिता बहुत गुस्से में है

पता नहीं !
पिता आजकल किस पर गुस्सा करता है
पर हाँ ! उसके गुस्से से डरने वाला कोई न होगा तो
छूट जायेगा पिता को पहाड़ बनाये रखने वाला अवलम्ब
पिता बिना पहाड़ हुए जीकर क्या करेगा !

मैं जानता हूँ
      पिता ने हमेशा दुःख उठाये हैं
      पिता पेट काट-काटकर जिया है अपना
      एक सल्तनत खड़ी की है, उन्नति बहुत की है
मगर पिता नही जानता
      जो दुःख उसने उठाये हैं
सब के सब दिखाई देने वाले हैं, उन्हें गिना जा सकता है
उन्हें बार-बार बख़ान किया जा सकता है, सच कहूँ तो बका जा सकता है
भूख सहना, पत्थर तोड़ना, नंगे पांवों घूमना, चिथड़े लपेट कर सोना
अगर यह सब दुःख है, तो वो क्या थे जो दादाजी ने सहे
दादाजी को यह दुःख नहीं लगते थे, यही जीवन था और मरते दम तक था
दादाजी कभी गुस्सा नहीं हुए
पिता ने यह कुछ दिन झेला अतः दुःख है यह

पिता जानता है कुछ नहीं किया जा सकता
पिता बहुत कुछ जानता है
जानता है कि मैं अयोग्य नहीं हूँ
मेरी जो अयोग्यता है उसमें पिता भी है जिम्मेदार
पिता यह भी जानता है
      मैं जो दुःख उठा रहा हूँ    
      उन्हें देखा नहीं जा सकता, गिना नहीं जा सकता
      उन्हें बखान भी नहीं किया जा सकता
पिता महसूसता है मेरे दुःखों को
इसलिये बहुत गुस्से में है पिता इन दिनों !

पिता बहुत भोला है
सोचता है पिता
मैं कोई छोटा काम नहीं करना चाहता
पिता सोचता है भ्रमवश
      मुझसे नहीं हो पाता कोई मेहनत का काम
पिता बहुत गुस्से में है
क्यूँकि जानता है पिता कि उसकी सोची हुई बातें भी सच नहीं हैं

एक दिन लतियाया पिता ने अपनी ईमानदारी को
जब हर तरफ़ नोट बिखरे देखे और हवा में सुनीं सिफारिशों की गूंज
अचानक कर दिया ऐलान, लगभग धकियाते हुए अपनी सत्यनिष्ठा को
कि मैं छोड़ दूं देखना नौकरी के ख़्वाब
बहुत अच्छा भी लगा था जब पिता ने कमाकर खाने को कहा
बहुत अच्छा लेकिन बहुत बुरा अच्छा !
क्यूँकि मैं हो गया तैयार उसके लिये भी बड़े अकिंचन भाव से
इसलिये पिता बहुत-बहुत गुस्से में है

गुस्सा तो मुझे होना चाहिये
अपने पिता को मज़बूर, हताश देखकर
जब थका-हारा पिता करता है हजारों-हजार धंधों पर विचार
मुझे आग लगा देनी चाहिये दुनिया को
मैं देखता हूँ पिता को नींद नहीं आती देर रात तक
जब नींद खुले मां को जागता ही मिलता है पिता
मुझे कोसते-कोसते पिता को सिर्फ़ मुझी से प्यार रह गया है स्थूल जगत में
मैं केवल गर्व करता हूँ पिता पर   
मैं जो नहीं कर सकता
पिता आज भी करता है उम्र के इस पड़ाव पर    
पिता बहुत गुस्सा करता है

पिता हैरान है मेरे बढ़ते ख़र्चे देखकर
त्यौंरियां चढ़ाकर देखता है पिता
कि मैं पैसे नहीं मांगता मां से आजकल
बौखला गया पिता मेरे कमाने की खबर अचानक सुनकर
एक क्षण की खुशी के बाद अगले ही पल से चिंतित है पिता
कि मैं कैसे रह पाऊँगा साबुत
खुद को अपराधी-सा समझने लगा है पिता
उसके देखते ही देखते मैं आ गया हूँ दो पाटों के बीच

बेटे लिखते रहते हैं पिता का भाग्य
और बेटे तो होते ही हैं विध्न-संतोषी
बेटे भूल जाते हैं अनेकों सिखावन
वे आदर करते हैं और कभी नहीं भी करते
मगर सबकुछ उदण्डतावश ही
मैं नहीं डरता उतना
जितना पिता डरता है कणकण से
सिर्फ़ खामोश हो जाने से नहीं चलेगा
पिता बहुत गुस्से में है बहुत

कोई भी खेल नहीं खेला मैंने पिता इच्छा के विरुद्ध
अब निश्चिंत रहे पिता
मुझे आग से खेलते देख डरे नहीं पिता
मुझे आग नहीं जला सकती
अब तो झूठा पड़ गया है पिता
अब क्यूँ करता है गुस्सा
इस खेल को बंद करना अपनी पीढ़ियों को दुःख देना है
शायद समझ गया है पिता
कि उसके गुस्सा करने से कुछ नहीं होता
इसलिये पिता बहुत गुस्से में है इन दिनों !