सूखे पत्ते
उसी वृक्ष के नीचे
जहाँ बासन्ती बयार में
हम किया करते थे मन-क्रीड़ा
गया था मैं अकेला पतझड़ के दिनों
और लिख आया था
सूखे पत्तों पर अपने मन की बात।
जब अबके बसन्त तुम वहाँ गयी
तुमने पढ़ली सूखे पत्तों पर मेरी आह
या तुम्हारे वहाँ जाने से पहले ही
हवा उड़ा ले गई मेरे दिल की बात?
काश! अबकी बार भी संभव हो पाता
हमारा वहाँ साथ-साथ जाना
मिलकर ढूँढ़ते हम उन पत्तों को
और पढ़ते सूखे पत्तों पर
अपने बिछोह के दिन
तुम्हें कभी याद आये मेरी
पेड़ो तले ढूँढ़ना सूखे पत्ते
और पढ़ना उन्हें।
Saturday, May 23, 2009
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5 comments:
आप में अच्छी कविता है मित्र...
बेहतर अभिव्यक्ति...
वाह!! क्या बात है!!
मन-क्रीड़ा-- ये एक नयापन सा लिए हुए शब्द पसंद आया.
विछोह के दिनो को ढूढने की ललक अच्छी लगी.
अच्छी कोशिश।
दे गया संकेत पतझड़ आगमन ऋतुराज का।
तब भ्रमर के संग सुमन को झूमना अच्छा लगा।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत ही ख़ूबसूरत कविता लिखा है आपने! लिखते रहिये!
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