Thursday, August 27, 2009

मौन

मौन के गर्भ में

चुप बचा लेती है
चुप खा जाती है

चुप है ज्ञान भी
चुप ही है मूर्खता पर आवरण

चुप व्यर्थ है
चुप शस्त्र है

जिसका बहुत बोलना नहीं क्रांति
उसकी चुप्पी में भी नहीं है धार

चुप्पी डर है
चुप्पी डराती है

चुप समझौता है
चुप्पी लड़ाती है

चुप्पी स्वार्थ पर सवार है
चुप्पी त्याग का घर है

चुप्पी मौत है
चुप्पी आस है, आस में सांस है


चुप षडयन्त्र है
चुप योजना है

चुप संतुष्टि है
चुप बगावत है

चुप छल है
चुप बल है

चुप नहीं है इतनी सादा
चुप रखती है गर्भ
चुप रचती है रहस्य

चुप अभिमान है
चुप विनय है
सम्मान है चुप
चुप अपमान है

चुप क्रोध है
चुप प्रेम है

चुप सज़ा है, दण्ड है
चुप क्षमा है, दया है चुप
प्रतिशोध भी है चुप

चुप इन्क़ार है
चुप स्वीकार है

चुप बोलती है
चुप चुप ही रहती है

चुप रचती है इतिहास
चुप गढ़ती है भविष्य चुपचाप
चुप कभी नहीं होती कोई वर्तमान

चुप अपराध है, लज्ज़ा है, ग्लानि है चुप
चुप उपेक्षा है

पर चुप नहीं है कोई ध्वजा
चुप नहीं है भाईचारा
चुप नहीं है जग सारा

चुप करती है विचलित
चुप कराती है संदेह
चुप दिलाती है क्रोध
चुप खड़ा कर देती है बड़ा बखेड़ा

चुप ताक़त है
इतनी कि बर्दास्त नहीं होती है
चुप !

6 comments:

Ashok Kumar pandey said...

चुप्पी के ख़िलाफ़ ऐसे ही लामबंद होने की ज़रूरत है।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

चुप बचा लेती है
चुप खा जाती है
बहुत सुन्दर रचना. बधाई.

Ashutosh said...

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.
हिन्दीकुंज

प्रीतीश बारहठ said...

आभार !

@अशोक कुमार पाण्डे जी
चुप्पी के खिलाफ लामबंदी का झण्डा तो आपकी कविता 'वे चुप हैं' ही उठा सकती है। इस कविता में वह ताक़त कहाँ ! डर है यह कहीं उल्टा काम करे।
यदि अच्छी लगी हो तो मैं यह किवता आपको समर्पित करता हूँ इसकी प्रेरणा मुझे आपकी ही उक्त कविता से मिली है।.
आप मेरे ब्लाग पर आये इसका मुझे आश्चर्य मिश्रित सुख मिला है।

प्रीतीश बारहठ said...

Deepa Singh Said..
मौन का इतना अच्छा विवर्ण देख कर मन प्रसन्न हो गया मेरी तरफ से बधाई ,.

Ashok Kumar pandey said...

अरे भाई कविता वाकई अच्छी है