मौन के गर्भ में
चुप बचा लेती है
चुप खा जाती है
चुप है ज्ञान भी
चुप ही है मूर्खता पर आवरण
चुप व्यर्थ है
चुप शस्त्र है
जिसका बहुत बोलना नहीं क्रांति
उसकी चुप्पी में भी नहीं है धार
चुप्पी डर है
चुप्पी डराती है
चुप समझौता है
चुप्पी लड़ाती है
चुप्पी स्वार्थ पर सवार है
चुप्पी त्याग का घर है
चुप्पी मौत है
चुप्पी आस है, आस में सांस है
चुप षडयन्त्र है
चुप योजना है
चुप संतुष्टि है
चुप बगावत है
चुप छल है
चुप बल है
चुप नहीं है इतनी सादा
चुप रखती है गर्भ
चुप रचती है रहस्य
चुप अभिमान है
चुप विनय है
सम्मान है चुप
चुप अपमान है
चुप क्रोध है
चुप प्रेम है
चुप सज़ा है, दण्ड है
चुप क्षमा है, दया है चुप
प्रतिशोध भी है चुप
चुप इन्क़ार है
चुप स्वीकार है
चुप बोलती है
चुप चुप ही रहती है
चुप रचती है इतिहास
चुप गढ़ती है भविष्य चुपचाप
चुप कभी नहीं होती कोई वर्तमान
चुप अपराध है, लज्ज़ा है, ग्लानि है चुप
चुप उपेक्षा है
पर चुप नहीं है कोई ध्वजा
चुप नहीं है भाईचारा
चुप नहीं है जग सारा
चुप करती है विचलित
चुप कराती है संदेह
चुप दिलाती है क्रोध
चुप खड़ा कर देती है बड़ा बखेड़ा
चुप ताक़त है
इतनी कि बर्दास्त नहीं होती है
चुप !
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6 comments:
चुप्पी के ख़िलाफ़ ऐसे ही लामबंद होने की ज़रूरत है।
चुप बचा लेती है
चुप खा जाती है
बहुत सुन्दर रचना. बधाई.
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.
हिन्दीकुंज
आभार !
@अशोक कुमार पाण्डे जी
चुप्पी के खिलाफ लामबंदी का झण्डा तो आपकी कविता 'वे चुप हैं' ही उठा सकती है। इस कविता में वह ताक़त कहाँ ! डर है यह कहीं उल्टा काम करे।
यदि अच्छी लगी हो तो मैं यह किवता आपको समर्पित करता हूँ इसकी प्रेरणा मुझे आपकी ही उक्त कविता से मिली है।.
आप मेरे ब्लाग पर आये इसका मुझे आश्चर्य मिश्रित सुख मिला है।
Deepa Singh Said..
मौन का इतना अच्छा विवर्ण देख कर मन प्रसन्न हो गया मेरी तरफ से बधाई ,.
अरे भाई कविता वाकई अच्छी है
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