इतिहास और हम
आज
बहुत वीरता महसूस की
उन्हें लताड़ा इतना
हमने कहा
वे अपराधी थे, अत्याचारी
कुटिल, व्यभिचारी, चोर, लफंगे
डाकू और दरिद्र, लघु और अधम
बर्बर, मूर्ख कहा उन सभी को
जो शासक थे किसी व्यवस्था, किसी समय के
जो – जो बड़े थे अपेक्षाकृत तब हमसे
जिनने कुछ बनवाया था/बनाया था
अपने नाम लिखवा गये थे वे अपनी निगरानी में
हमसे कुछ पहले
कोई उनके पक्ष में बोला
बड़ाई की
हमारी घृणा को अन्य चोट देते हुए
उन्हें हमने आज हराया
उनका सृजन अपना ठहराया
उनका ध्वंसकर्म भी निष्फल कर दिया
हमने थूका उनके नामों पर
वे आज भी हैं
हम तब भी थे
हम तब भी घृणा करते थे
वे आज भी शासन करते हैं
इतिहास में वे ही रहेंगे
जिनसे हम घृणा करते हैं?
हम सदियों पुरानी बातों को गलत ठहराते हैं
वर्तमान को भी
लेकिन सुधारते नहीं हैं
हमें आता भी नहीं है इतिहास बनाना
जो बनाते हैं उनसे गलत हो जाता है
हमारे लिये।
5 comments:
kvita thik hai...aap me anyay ke prati ek tivra pratirodh ki bhavana hai...aur meri najar me iska hona sarvatha prasansniy hai...
रचना के भाव बहुत बढिया है।बधाई।
हम सदियों पुरानी बातों को गलत ठहराते हैं
वर्तमान को भी
लेकिन सुधारते नहीं हैं
हमें आता भी नहीं है इतिहास बनाना
जो बनाते हैं उनसे गलत हो जाता है
हमारे लिये....
प्रतिश जी बहुत सुंदर भाव....!!
very thoughtful indeed ! quite true !
Munish
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