राजा में ईश्वर ?
जब हम बच्चे थे
ढूँढ़ा करते थे चाँदी के बाल
ऊँट के पदचिह्नों में
कुछ लोग कहते थे
सौ के नोट में होता है सोने का तार
उसे निकाल लो तो नोट की कोई क़ीमत नहीं
फिर नोट है बेकार
मैं अब भी चाहता हूँ चाँदी के बाल ढूँढ़ना
फाड़कर फैंक देना चाहता हूँ सौ का नोट
निकाल कर सोने का तार !
हाँ मैं आज भी उन बातों पर यक़ीन करना चाहता हूँ
जाना चाहता हूँ वहाँ
जहाँ भरमा सके मुझे कोई
आओ हम सब मिलकर थूंके बाज़ की छाँव में
हम जितना थूंकेंगे बन जायेंगे उतने ही सिक्के
फिर तुम कर सकोगे हीनार्थ प्रबन्ध
यक़ीन करो
बाज़ न ऋण देता है
न ब्याज लेता है
हाँ – हाँ ! मैं नहीं समझना चाहता तुम्हारा अर्थशास्त्र
और धातु का उत्खनन
खूब समझाया दादाजी ने
राजा में होता है ईश्वर का अंश
तुम कहते हो – राजा बदल दो ये लायक नहीं
मुझे पूछ आने दो दादाजी से-
क्या अब नहीं रहता राजा में ईश्वर !
या ईश्वर अब लायक नहीं रहा है?
जब हम बच्चे थे
ढूँढ़ा करते थे चाँदी के बाल
ऊँट के पदचिह्नों में
कुछ लोग कहते थे
सौ के नोट में होता है सोने का तार
उसे निकाल लो तो नोट की कोई क़ीमत नहीं
फिर नोट है बेकार
मैं अब भी चाहता हूँ चाँदी के बाल ढूँढ़ना
फाड़कर फैंक देना चाहता हूँ सौ का नोट
निकाल कर सोने का तार !
हाँ मैं आज भी उन बातों पर यक़ीन करना चाहता हूँ
जाना चाहता हूँ वहाँ
जहाँ भरमा सके मुझे कोई
आओ हम सब मिलकर थूंके बाज़ की छाँव में
हम जितना थूंकेंगे बन जायेंगे उतने ही सिक्के
फिर तुम कर सकोगे हीनार्थ प्रबन्ध
यक़ीन करो
बाज़ न ऋण देता है
न ब्याज लेता है
हाँ – हाँ ! मैं नहीं समझना चाहता तुम्हारा अर्थशास्त्र
और धातु का उत्खनन
खूब समझाया दादाजी ने
राजा में होता है ईश्वर का अंश
तुम कहते हो – राजा बदल दो ये लायक नहीं
मुझे पूछ आने दो दादाजी से-
क्या अब नहीं रहता राजा में ईश्वर !
या ईश्वर अब लायक नहीं रहा है?
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